
प्रदोष व्रत
प्रत्येक माहकी शुक्ल एवं कृष्ण त्रयोदशीपर सूर्यास्त उपरांतके तीन घटकोंके कालको प्रदोष कहते हैं । ‘प्रदोषो रजनीमुखम् ।’ इस तिथिपर दिनभर उपवास एवं उपासना कर, रातको शिवपूजा उपरांत भोजन करें ।
1. तिथि
प्रत्येक माहकी शुक्ल एवं कृष्ण त्रयोदशीपर सूर्यास्त उपरांतके तीन घटकोंके कालको प्रदोष कहते हैं । ‘प्रदोषो रजनीमुखम् ।’
2. व्रत करनेकी पद्धति
इस तिथिपर दिनभर उपवास एवं उपासना कर, रातको शिवपूजा उपरांत भोजन करें । प्रदोषके अगले दिन श्रीविष्णुपूजन अवश्य करें । संभवतः इस व्रतका प्रारंभ उत्तरायणमें करें । यह व्रत तीनसे बारह वर्षकी अवधि का होता है । कृष्ण पक्षका प्रदोष यदि शनिवारको हो, तो उसे विशेष फलदायी मानते हैं ।
3. निषेध
कहा गया है कि प्रदोषकालमें वेदाध्ययन न करें; क्योंकि यह रात्रिकालका व्रत है और वेदाध्ययन तो सूर्यके रहते हुए करना चाहिए । यह व्रत तीनसे बारह वर्षकी अवधिका होता है । कृष्ण पक्षका प्रदोष यदि शनिवारको आए, तो उसे विशेष फलदायी मानते हैं ।
4. प्रकार
प्रदोष व्रतके चार प्रकार हैं – सोमप्रदोष, भौमप्रदोष, शनिप्रदोष एवं पक्षप्रदोष ।